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Friday, 28 March 2014
Wednesday, 26 March 2014
आम आदमी की कुंडलिया ---
आम आदमी की कुंडलिया ---
::::::::::::::::::::::::
आम आदमी नाम रख , फिरते हैं कुछ खास ।
उल्टी पुल्टी चाल से , तोड़ रहे विश्वास ।।
तोड़ रहे विश्वास , सदा परनिन्दा करते ,
संविधान से ऊपर खुद को सदा समझते ।।
लगातार ये बना रहे , माहौल मातमी ।
"होरी" बेहद शर्मिन्दा अब आम आदमी ।।
------------------------------------
राज कुमार सचान "होरी"
www.badaltabharat.com , horionline.blogspot.com
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आम आदमी नाम रख , फिरते हैं कुछ खास ।
उल्टी पुल्टी चाल से , तोड़ रहे विश्वास ।।
तोड़ रहे विश्वास , सदा परनिन्दा करते ,
संविधान से ऊपर खुद को सदा समझते ।।
लगातार ये बना रहे , माहौल मातमी ।
"होरी" बेहद शर्मिन्दा अब आम आदमी ।।
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राज कुमार सचान "होरी"
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Sunday, 23 March 2014
मैं भी झेलूं , तू भी झेल
मैं भी झेलूं , तू भी झेल
---------------------
१--लूले अन्धे सत्ताकामी , मैं भी झेलूं ,तू भी झेल ।
प्रजातन्त्र के ये आसामी, मैं भी झेलूं तू भी झेल ।।
२--जब शासन में दु:शासन ,गान्धारी आँखों में पट्टी,
तब तब शकुनी कौड़ी कानी, मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
३--गान्धी गान्धी मुख से बोलें सत्य अहिंसा खाकर,
बापू के सुन्दर अनुगामी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
४-- जब सत्ता वेश्या बना दी गई होगा क्या ,
सत्ता की औलाद हरामी , मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
५--कहता था मत विष घोलो यूँ हृदयों में ,
अब खून बह रहा जैसे पानी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
६-- कश्मीर जलेगा , राष्ट्र जलेगा इसी तरह ,
भ्राता हो जब पाकिस्तानी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
७--तन मन तार तार होता है होरी का फिर "होरी"
गोदानों की यही कहानी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
८-- खण्ड राष्ट्र फिर खण्डित होने का भय "होरी"
दिल्ली जब जब बनी जनानी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
राज कुमार सचान "होरी"
www.badaltabharat.com ,horionline.blogspot.com
Email- rajkumarsachanhori@gmail.com
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१--लूले अन्धे सत्ताकामी , मैं भी झेलूं ,तू भी झेल ।
प्रजातन्त्र के ये आसामी, मैं भी झेलूं तू भी झेल ।।
२--जब शासन में दु:शासन ,गान्धारी आँखों में पट्टी,
तब तब शकुनी कौड़ी कानी, मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
३--गान्धी गान्धी मुख से बोलें सत्य अहिंसा खाकर,
बापू के सुन्दर अनुगामी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
४-- जब सत्ता वेश्या बना दी गई होगा क्या ,
सत्ता की औलाद हरामी , मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
५--कहता था मत विष घोलो यूँ हृदयों में ,
अब खून बह रहा जैसे पानी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
६-- कश्मीर जलेगा , राष्ट्र जलेगा इसी तरह ,
भ्राता हो जब पाकिस्तानी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
७--तन मन तार तार होता है होरी का फिर "होरी"
गोदानों की यही कहानी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
८-- खण्ड राष्ट्र फिर खण्डित होने का भय "होरी"
दिल्ली जब जब बनी जनानी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
राज कुमार सचान "होरी"
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Wednesday, 19 March 2014
Tuesday, 18 March 2014
Monday, 10 March 2014
डा. भीमराव अम्बेडकर के कुछ सम्बोधन ़़़़़
डा. भीमराव अम्बेडकर के कुछ सम्बोधन ़़़़़
@@@@@@@@@@@@@@@@@@
राज कुमार सचान 'होरी'
"बाबा साहब चरित मानस " के रचनाकार, प्रसिद्ध कवि, एवं लेखक
-----------------------------------------------------------------------------
स्वजनों को सम्बोधित करते हुये ़़़़़़़
"तुम्हारे ये दीन दुबले चेहरे देख कर और करुणा जनक वाणी सुन कर मेरा हृदय फटता है । अनेक युगों से तुम गुलामी की गर्त में बैठ रहे हो ,गल रहे हो ,सड़ रहे हो ; फिर भी तुम्हारी भावना यही है कि तुम्हारी यह गति देव निर्मित है ---ईश्वर के संकेत के अनुसार है । तुम गर्भ में ही क्यों नहीं मरे ? जन्म लेकर तुम जगत में दुख , दरिद्रता और दासता के विकराल चित्र का वीभत्स रूप अपने अवनत और अपमानित जीवन से बढ़ा रहे हो । अगर तुम्हारे जीवन का पुनुरुज्जीवन नहीं हो सकता तो तुम स्वयं मिट कर इस जगत के दुख का बोझ कम क्यों नहीं करते ? तुम मनुष्य जैसे मनुष्य हो ।खुद के कर्तृत्व से जगत में उन्नति करने का अधिकार सबको है । तुम इस देश के निवासी हो ।अन्य भारतीयों के समान अन्न , वस्त्र , आस्रयमिलना तुम्हारा अपना जन्म सिद्ध अधिकार है ।"
कुलाबा ज़िला बहिस्कृत परिषद में ़़़़़़़़़
" नार्मल स्कूल में शिक्षा लेकर लश्कर में हेड मास्टर , सूबेदार , जमादार बन कर बुद्धिमत्ता , तेज , शौर्य दिखाने का मौका उस समाज को मिलता था । मराठे नीचे झुक कर सलाम करते थे । कम्पनी सरकार द्वारा शुरू की गई लश्कर की सख्ती की शिक्षा के कारण उनकी ज्यादा प्रगति हुई थी । जिस अस्प्रश्य समाज की सहायता के बिना ब्रिटिश सरकार का इस देश में प्रवेश कभी न होता , उस अस्पृश्य समाज की भर्ती करना ब्रिटिश सरकार ने आगे बन्द कर दिा , इस लिये यह अनर्थ उनके साथ हुआ है ।" "नेपोलियन ने जिस इंग्लैंड देश को 'काटो तो खून नहीं ' कर दिया ; उस देश ने मराठाशाही को विनष्ट किया ;इसका कारण मराठों के जाति भेद का मनमुटाव और आपसी भेदभाव न हो कर ब्रिटिशों द्वारा इस देशवासियों की सेना खड़ी करना,
है । लेकिन वह सेना थी अस्पृश्य जाति की । अगर अंग्रेजों को अस्पृश्यों का बल प्राप्त न होता ,तो यह देश वे कभी भी काबिज नहीं कर सकते थे " आगे कहा --"हम सरकार के हमेशा अनुकूल होते हैं , इसीलिये तो सरकार हमारी हमेशा उपेक्षा करती है । सरकार जो दे उसे लेना , जो कहे वही सुनना सुनना जिस स्थिति में रहने के लिये बतायेगी उस स्थिति में रहना ---हमारी दास्य वृत्ति बन गयी है ।लश्कर भर्ती पर बन्दी उठाने का भरसक प्रयास करो ।" ....." सरकार एक जबर्दस्त महत्वपूर्ण संस्था है । सरकार के मन में जो होगा , उसके उनुरूप सब कुछ घटित होगा , लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि सरकार कौन सी बातें कर सकेगी ;यह पूरी तरह से सरकारी नौंकरों पर निर्भर है । क्योंकि सरकार े मत का मतलब है सरकारी नौंकरों का मत ।हमें सरकारी नौकरियों में प्रवेश करना चाहिये ।"
गोलमेज परिषद में ़़़़़़़़
"जिन लोगों की स्थिति गुलामों से भी बुरी है और जिनकी जनसंख्या फ्रांस की जनसंख्या जितनी है ,ऐसे भारत के 1/5 लोगों की शिकायतें मैं परिषद के सम्मुख रख रहा हूं । न दलितों की माँग यह है कि भारत सरकार लोगों द्वारा , लोगों के द्वारा चलाया गया , लोगों का राज्य हो । ब्रिटिश राज्य आने से पहले हमारी जो करुणाजनक स्थिति थी , उसमें तनिक भी फ़र्क नहीं पड़ा है । हम केवल मौके की प्रतीक्षा कर रहे हैं । ब्रिटिश राज्यसत्ता से पहले हमें देहातों में कुयें से पानी भरना मना था । क्या ब्रिटिश सरकार ने हमें यह न्याय दिलवाया ? पहले हमें मन्दिर प्रवेश मना था क्या ब्रिटिश सरकार ने दिलवाया ? पुलिस में प्रवेश नहीं था क्या ब्रिटिश सरकार ने दिलवाया ? .....इन सभी प्रश्नों के उत्तर हम नकारात्मक देते हैं । .".....
गांधी अम्बेडकर की प्रथम भेंटमें वार्तालाप से .....
" आप कहते हैं कि आपके पास मातृ भूमि है , लेकिन मैं फिर बताता हूं कि मेरे पास मातृभूमि नहीं है । जिस देश में कुत्ता जिस तरह की ज़िन्दगी जीता है , उस तरह की ज़िन्दगी भी हम नहीं गुज़ार सकते ; कुत्ते बिल्लियों को जितनी सुविधायें प्राप्त होती हैं , उतनी सुविधायें भी हमें हर्ष के साथ जिस देश में नहीं मिलती हैं, उस भूमि को मेरी जन्म भूमि और उस भूमि के धर्म को मेरा धर्म कहने के लिये मैं ही क्या , परन्तु जिसे इन्शानियत का ज्ञान हुआ है औरजिसे स्वाभिमान की परवाहहै --- ऐसा कोई भी अस्पृश्य तैयार नहीं होगा ।इस देश ने हमारे बारे में इतना अक्षम्य अपराध किया है कि हमने उसका कैसा भी और कोई भी भयंकर द्रोणी किया हो , तो भी उससे होने वाले पाप की जिम्मेदारी हमारे शिर नहीं पड़ेगी । ऐसा होने के कारण मुझे अराष्ट्रीय कह कर कोई कितनी भी गालियाँ दे , तो भी उसके बारे में विषाद मान लेने का मेरा कोई प्रयोजन नहीं है क्योंकि मेरे तथाकथित अराष्ट्रीयत्व की जिम्मेदारी मुझ पर न हो कर मुझे अराष्ट्रीय कहने वाले लोगों पर , उस राष्ट्र पर है । मेरे पाप के भागी वे हैं , मैं नहीं । "
मन्दिर प्रवेश के मुद्दे पर ......
" स्पृश्य हिन्दुओं से मेरा कहना है कि आप मन्दिर खोलें या न खोलें , इस पर सोच विचार आप करें । मैं उसके लिये आंदोलन नहीं करूंगा । मनुष्य के पवित्र व्यक्तित्व के प्रति सम्मान रखना आपको सभ्यता का लक्षण लगता है तो आप मन्दिर खोलें और सज्जन जैसा बर्ताव करें । सज्जन बनने की अपेक्षा अगर आपको हिन्दू जन के रूप में शेखी बघारना हो ,तो मन्दिर के द्वार बन्द करो और आत्मनाश करो ।........ जो धर्म असमानता का समर्थन करता है ,उसका विरोध करने का उन्होने निश्चय किया है । अगर हिन्दू धर्म को सामाजिक समता का धर्म बनना है तो उसके क़ानून में अस्पृश्यों को मन्दिरप्रवेश देने तक ही सुधार करना काफ़ी नहीं होगा । उसके लिये चातुर्वर्ण्य निर्मूलन कर उसकी शुद्धि करनी चाहिये ।समस्त असमानता का मूल चातुर्वर्ण्य है । चातुर्वर्ण्य अस्पृश्यता की जननी है क्योंकि जातिभेद और अस्पृश्यता असमानता के अन्य रूप हैं "
वीर सावरकर द्वारा अम्बेडकर को मन्दिर का उद्घाटन करने के निमंत्रण पर ....
"मैं पूर्व नियोजित काम काज की वजह से नहीं आ सकता । लेकिन आप समाज सुधार के क्षेत्र में काम कर रहे हैं उसके बारे में अनुकूल अभिप्राय देने का मौका मैं ले रहा हूं ।अगर अस्पृश्य वर्ग को हिन्दू साजा अभिन्न अंग होना है तो केवल अस्पृश्यता निर्मूलन हो कर नहीं चलेगा । चातुर्वर्ण्य का निर्मूलन होना चाहिये । जिन थोड़े लोगों को इसकी आवश्यकता महसूस हुयी है , उनमें से एक आप हैं , यह कहते हुये मुझे हर्ष होता है ।"
फ़रवरी 1942 मुम्बई के वागले हाल में ' पाकिस्तान विषयक विचार' पर उद्बोधन
"उनके साथ वाद विवाद करने में कोई अर्थ नहीं , जिन्हें पाकिस्तान एक चर्चा का विषय नहीं लगता । अगर उन्हें पाकिस्तान का निर्माण अन्यायकारी लगा होगा तो भविष्यकालीन पाकिस्तान उन्हें एक अत्यंत भयंकर घटना महसूस होगी । यह कहना ग़लत है कि इतिहास को भूल जाओ । जो इतिहास को भूलते हैं , वे इतिहास निर्माण नहीं कर सकेंगे । यह बात अक्ल की है कि भारतीय फौज में से मुसलमानों का प्रतिनिधत्व कम कर के उस फौज को एकीसवीं औरएकनिष्ठ करना ज़रूरी है । अपनी मातृभूमि की सुरक्षा हम ज़रूर करेंगे ...... मैं यह स्वीकार करता हूं कि स्पृश्य हिन्दुओं के साथ कुछ मुद्दों पर मेरा झगड़ा है ,लेकिन आपके सामने मैं यह प्रतिज्ञा करता हूं कि अपने देश की स्वतंत्रता सुरक्षित रखने के लिये मैं अपने प्राण न्योछावर करूंगा ।"
डाक्टर अम्बेडकर के उक्त कुछ उद्बोधनों को उद्धृत करने का मेरा अभिप्राय यह है कि उन्हे उनके मूल में जाने और समझें । वैसे तो उनका जीवन इतनी बड़ी किताब है कि अगर उसके सारे पृष्ठ सम्पूर्ण धरती में फैलाये जायें तो पूरी पृथ्वी ढक जायेगी ।
राज कुमार सचान 'होरी'
176 अभय खण्ड (प्रथम) ,इंदिरापुरम , ग़ाज़ियाबाद
राष्ट्रीय अध्यक्ष -- बदलता भारत( INDIA CHANGES)
www.badaltabharat.com , eid --rajkumarsachanhori@gmail.com , mob 09958788699
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राज कुमार सचान 'होरी'
"बाबा साहब चरित मानस " के रचनाकार, प्रसिद्ध कवि, एवं लेखक
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स्वजनों को सम्बोधित करते हुये ़़़़़़़
"तुम्हारे ये दीन दुबले चेहरे देख कर और करुणा जनक वाणी सुन कर मेरा हृदय फटता है । अनेक युगों से तुम गुलामी की गर्त में बैठ रहे हो ,गल रहे हो ,सड़ रहे हो ; फिर भी तुम्हारी भावना यही है कि तुम्हारी यह गति देव निर्मित है ---ईश्वर के संकेत के अनुसार है । तुम गर्भ में ही क्यों नहीं मरे ? जन्म लेकर तुम जगत में दुख , दरिद्रता और दासता के विकराल चित्र का वीभत्स रूप अपने अवनत और अपमानित जीवन से बढ़ा रहे हो । अगर तुम्हारे जीवन का पुनुरुज्जीवन नहीं हो सकता तो तुम स्वयं मिट कर इस जगत के दुख का बोझ कम क्यों नहीं करते ? तुम मनुष्य जैसे मनुष्य हो ।खुद के कर्तृत्व से जगत में उन्नति करने का अधिकार सबको है । तुम इस देश के निवासी हो ।अन्य भारतीयों के समान अन्न , वस्त्र , आस्रयमिलना तुम्हारा अपना जन्म सिद्ध अधिकार है ।"
कुलाबा ज़िला बहिस्कृत परिषद में ़़़़़़़़़
" नार्मल स्कूल में शिक्षा लेकर लश्कर में हेड मास्टर , सूबेदार , जमादार बन कर बुद्धिमत्ता , तेज , शौर्य दिखाने का मौका उस समाज को मिलता था । मराठे नीचे झुक कर सलाम करते थे । कम्पनी सरकार द्वारा शुरू की गई लश्कर की सख्ती की शिक्षा के कारण उनकी ज्यादा प्रगति हुई थी । जिस अस्प्रश्य समाज की सहायता के बिना ब्रिटिश सरकार का इस देश में प्रवेश कभी न होता , उस अस्पृश्य समाज की भर्ती करना ब्रिटिश सरकार ने आगे बन्द कर दिा , इस लिये यह अनर्थ उनके साथ हुआ है ।" "नेपोलियन ने जिस इंग्लैंड देश को 'काटो तो खून नहीं ' कर दिया ; उस देश ने मराठाशाही को विनष्ट किया ;इसका कारण मराठों के जाति भेद का मनमुटाव और आपसी भेदभाव न हो कर ब्रिटिशों द्वारा इस देशवासियों की सेना खड़ी करना,
है । लेकिन वह सेना थी अस्पृश्य जाति की । अगर अंग्रेजों को अस्पृश्यों का बल प्राप्त न होता ,तो यह देश वे कभी भी काबिज नहीं कर सकते थे " आगे कहा --"हम सरकार के हमेशा अनुकूल होते हैं , इसीलिये तो सरकार हमारी हमेशा उपेक्षा करती है । सरकार जो दे उसे लेना , जो कहे वही सुनना सुनना जिस स्थिति में रहने के लिये बतायेगी उस स्थिति में रहना ---हमारी दास्य वृत्ति बन गयी है ।लश्कर भर्ती पर बन्दी उठाने का भरसक प्रयास करो ।" ....." सरकार एक जबर्दस्त महत्वपूर्ण संस्था है । सरकार के मन में जो होगा , उसके उनुरूप सब कुछ घटित होगा , लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि सरकार कौन सी बातें कर सकेगी ;यह पूरी तरह से सरकारी नौंकरों पर निर्भर है । क्योंकि सरकार े मत का मतलब है सरकारी नौंकरों का मत ।हमें सरकारी नौकरियों में प्रवेश करना चाहिये ।"
गोलमेज परिषद में ़़़़़़़़
"जिन लोगों की स्थिति गुलामों से भी बुरी है और जिनकी जनसंख्या फ्रांस की जनसंख्या जितनी है ,ऐसे भारत के 1/5 लोगों की शिकायतें मैं परिषद के सम्मुख रख रहा हूं । न दलितों की माँग यह है कि भारत सरकार लोगों द्वारा , लोगों के द्वारा चलाया गया , लोगों का राज्य हो । ब्रिटिश राज्य आने से पहले हमारी जो करुणाजनक स्थिति थी , उसमें तनिक भी फ़र्क नहीं पड़ा है । हम केवल मौके की प्रतीक्षा कर रहे हैं । ब्रिटिश राज्यसत्ता से पहले हमें देहातों में कुयें से पानी भरना मना था । क्या ब्रिटिश सरकार ने हमें यह न्याय दिलवाया ? पहले हमें मन्दिर प्रवेश मना था क्या ब्रिटिश सरकार ने दिलवाया ? पुलिस में प्रवेश नहीं था क्या ब्रिटिश सरकार ने दिलवाया ? .....इन सभी प्रश्नों के उत्तर हम नकारात्मक देते हैं । .".....
गांधी अम्बेडकर की प्रथम भेंटमें वार्तालाप से .....
" आप कहते हैं कि आपके पास मातृ भूमि है , लेकिन मैं फिर बताता हूं कि मेरे पास मातृभूमि नहीं है । जिस देश में कुत्ता जिस तरह की ज़िन्दगी जीता है , उस तरह की ज़िन्दगी भी हम नहीं गुज़ार सकते ; कुत्ते बिल्लियों को जितनी सुविधायें प्राप्त होती हैं , उतनी सुविधायें भी हमें हर्ष के साथ जिस देश में नहीं मिलती हैं, उस भूमि को मेरी जन्म भूमि और उस भूमि के धर्म को मेरा धर्म कहने के लिये मैं ही क्या , परन्तु जिसे इन्शानियत का ज्ञान हुआ है औरजिसे स्वाभिमान की परवाहहै --- ऐसा कोई भी अस्पृश्य तैयार नहीं होगा ।इस देश ने हमारे बारे में इतना अक्षम्य अपराध किया है कि हमने उसका कैसा भी और कोई भी भयंकर द्रोणी किया हो , तो भी उससे होने वाले पाप की जिम्मेदारी हमारे शिर नहीं पड़ेगी । ऐसा होने के कारण मुझे अराष्ट्रीय कह कर कोई कितनी भी गालियाँ दे , तो भी उसके बारे में विषाद मान लेने का मेरा कोई प्रयोजन नहीं है क्योंकि मेरे तथाकथित अराष्ट्रीयत्व की जिम्मेदारी मुझ पर न हो कर मुझे अराष्ट्रीय कहने वाले लोगों पर , उस राष्ट्र पर है । मेरे पाप के भागी वे हैं , मैं नहीं । "
मन्दिर प्रवेश के मुद्दे पर ......
" स्पृश्य हिन्दुओं से मेरा कहना है कि आप मन्दिर खोलें या न खोलें , इस पर सोच विचार आप करें । मैं उसके लिये आंदोलन नहीं करूंगा । मनुष्य के पवित्र व्यक्तित्व के प्रति सम्मान रखना आपको सभ्यता का लक्षण लगता है तो आप मन्दिर खोलें और सज्जन जैसा बर्ताव करें । सज्जन बनने की अपेक्षा अगर आपको हिन्दू जन के रूप में शेखी बघारना हो ,तो मन्दिर के द्वार बन्द करो और आत्मनाश करो ।........ जो धर्म असमानता का समर्थन करता है ,उसका विरोध करने का उन्होने निश्चय किया है । अगर हिन्दू धर्म को सामाजिक समता का धर्म बनना है तो उसके क़ानून में अस्पृश्यों को मन्दिरप्रवेश देने तक ही सुधार करना काफ़ी नहीं होगा । उसके लिये चातुर्वर्ण्य निर्मूलन कर उसकी शुद्धि करनी चाहिये ।समस्त असमानता का मूल चातुर्वर्ण्य है । चातुर्वर्ण्य अस्पृश्यता की जननी है क्योंकि जातिभेद और अस्पृश्यता असमानता के अन्य रूप हैं "
वीर सावरकर द्वारा अम्बेडकर को मन्दिर का उद्घाटन करने के निमंत्रण पर ....
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फ़रवरी 1942 मुम्बई के वागले हाल में ' पाकिस्तान विषयक विचार' पर उद्बोधन
"उनके साथ वाद विवाद करने में कोई अर्थ नहीं , जिन्हें पाकिस्तान एक चर्चा का विषय नहीं लगता । अगर उन्हें पाकिस्तान का निर्माण अन्यायकारी लगा होगा तो भविष्यकालीन पाकिस्तान उन्हें एक अत्यंत भयंकर घटना महसूस होगी । यह कहना ग़लत है कि इतिहास को भूल जाओ । जो इतिहास को भूलते हैं , वे इतिहास निर्माण नहीं कर सकेंगे । यह बात अक्ल की है कि भारतीय फौज में से मुसलमानों का प्रतिनिधत्व कम कर के उस फौज को एकीसवीं औरएकनिष्ठ करना ज़रूरी है । अपनी मातृभूमि की सुरक्षा हम ज़रूर करेंगे ...... मैं यह स्वीकार करता हूं कि स्पृश्य हिन्दुओं के साथ कुछ मुद्दों पर मेरा झगड़ा है ,लेकिन आपके सामने मैं यह प्रतिज्ञा करता हूं कि अपने देश की स्वतंत्रता सुरक्षित रखने के लिये मैं अपने प्राण न्योछावर करूंगा ।"
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Saturday, 8 March 2014
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From: Kuldeep Singh Rajput <khulasanews@gmail.com>
Date: Sat, Mar 8, 2014 at 1:51 PM
Subject: ज़रूरी बहस , अपनी बात /रफ्तार टाइम न्यूज
To: horirajkumar.rajkumar@blogger.com, rajkumarsachanhori.indiachanges@blogger.com, horisardarpatel.indiachanges@bloger.com, horiindiachanges.changes@bloger.com, horisardar.patel@bloger.com
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Date: Sat, Mar 8, 2014 at 1:51 PM
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Expertise in making of Feature Films, Tele Films, Documentary Films, Corporate Films, Commercial Films, TV Serials, TV Shows & NEWS Contents etc.
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STUDIO : SANATAN TV, C-77, Sector-65, Noida, (U.P.) INDIA – 201301
C.O.: SUBHAM LIFE CARE (P) LIMITED, 115, First Floor, Om Nagar, Main G.T. Road, Mohan Nagar, Ghaziabad, (U.P.) INDIA - 201007
(24x7) Help Line: +91 9968 20 2264, +91 9350 990139.
Tele Fax: +91 120 433 2264.
E-mail: khulasanews@gmail.com, ceo@khulasanews.co.in, missionejournalism@gmail.com.
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Kind Regards!!!
Poet Kuldeep Singh Rajput (Aakash)
{Well known Film Producer, Director & Writer}
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मैं भी झेलूं , तू भी झेल
मैं भी झेलूं , तू भी झेल
---------------------
१--लूले अन्धे सत्ताकामी , मैं भी झेलूं ,तू भी झेल ।
प्रजातन्त्र के ये आसामी, मैं भी झेलूं तू भी झेल ।।
२--जब शासन में दु:शासन ,गान्धारी आँखों में पट्टी,
तब तब शकुनी कौड़ी कानी, मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
३--गान्धी गान्धी मुख से बोलें सत्य अहिंसा खाकर,
बापू के सुन्दर अनुगामी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
राज कुमार सचान होरी
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१--लूले अन्धे सत्ताकामी , मैं भी झेलूं ,तू भी झेल ।
प्रजातन्त्र के ये आसामी, मैं भी झेलूं तू भी झेल ।।
२--जब शासन में दु:शासन ,गान्धारी आँखों में पट्टी,
तब तब शकुनी कौड़ी कानी, मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
३--गान्धी गान्धी मुख से बोलें सत्य अहिंसा खाकर,
बापू के सुन्दर अनुगामी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
राज कुमार सचान होरी
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KHULASA NEWS (Revealing the Facts…):बदलता भारत [INDIA CHANGES]
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MUST WATCH FOR YOUR OWN UPLIFTMENTS.... https://www.facebook.com/Zarooribahas/photos/a.512749978796255.1073741825.512620102142576/519066931497893/?type=1&theater...
Blog: KHULASA NEWS (Revealing the Facts…)
Post: बदलता भारत [INDIA CHANGES]
Link: http://khulasanews.blogspot.com/2014/03/india-changes.html
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Thursday, 6 March 2014
Fwd: Pik
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Begin forwarded message:
From: Kapil Sharma <kapilzsharma09@gmail.com>
Date: 6 March 2014 2:16:02 PM GMT+05:30
To: "horirajkumar@gmail.com" <horirajkumar@gmail.com>
Subject: Pik
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Sunday, 2 March 2014
सत्ता परिवर्तन के लिये ।
उन्हें सौंपे जो साकार करें सपना सरदार पटेल का , सशक्त भारत का । ऐसा एक ही है ....... मोदी
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